हमे वीर केशव मिले आप जब से
नई साधना की डगर मिल गयी है
भटकते रहे ध्येय पथ के बिना हम
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है
न जाना कभी पा मनुज तन जगत मे
हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है
दिया ज्ञान जब से हमें आपने है
निरंतर प्रगती की डगर मिल गयी है||
समाया हुआ घोर ताम सर्वदिक था
सुपथ है किधर नहीं सूझता था
सभी सुप्त थे घोर ताम मे अकेला
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था
जलाकर स्वय किया मार्ग जगमग
हमे प्रेरणा की डगर मिल गयी है||
बहुत थे दुखी हिन्दू निज देश में ही
यूगो से सदा घोर अपमान पाया
द्रवित हो गये आप यह द्रश्य देख
नहीं एक पल को कभी चैन पाया
ह्रदय की व्यथा, संघ बन फूट निकली
हमें संगठन की डगर मिल गयी है||
करेंगे पुनः हम सुखी मात्र भू को
यही आपने शब्द मुख से कहे थे
पुनः हिन्दू का हो सुयश गान जाग में
संजोए यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे
जला डीप ज्योतित किया मात्र मन्दिर
हमें अर्चना की डगर मिल गयी है||
हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंआदरणीय,
जवाब देंहटाएंआज हम जिन हालातों में जी रहे हैं, उनमें किसी भी जनहित या राष्ट्रहित या मानव उत्थान से जुड़े मुद्दे पर या मानवीय संवेदना तथा सरोकारों के बारे में सार्वजनिक मंच पर लिखना, बात करना या सामग्री प्रस्तुत या प्रकाशित करना ही अपने आप में बड़ा और उल्लेखनीय कार्य है|
ऐसे में हर संवेदनशील व्यक्ति का अनिवार्य दायित्व बनता है कि नेक कार्यों और नेक लोगों को सहमर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाये|
आशा है कि आप उत्तरोत्तर अपने सकारात्मक प्रयास जारी रहेंगे|
शुभकामनाओं सहित!
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
(देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
फोन : 0141-2222225 (सायं सात से आठ बजे के बीच)
मोबाइल : 098285-02666
आपके स्नेह के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआओ हम सच को स्वीकारें
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