मंगलवार, 30 मार्च 2010

कविता

प्रगति का अभिषेक कर नव जागरण का पर्व आया
स्राजन का संदेश लेकर,संक्रमण का पर्व आया |
तोड़ बंधन कर्क का,दिनकर मकर पथ पर चला
प्रखरता रवि रश्मि में है,थिरकती है चंचला |
तोड़ती जड़ता नियती,हिमशित का अवसान है
अलस त्यागो ताम के,क्षरण का है पर्व आया |
देख प्राची के गगन पर,शौर्या का नव-भानु उगता
ले अमिट संकल्प उर में,तरुण हुंकार भरता |
आज जननी का करें,अरि शीश से अभिषेक नूतन
राष्‍ट्र का पौरुष जगा,नव जागरण हा पर्व आया |
कर पुन: तू सिंह गर्जन,हो संगठित बलवान बन
चूर कर दो दर्प अरि का,तू अडिग हिमवान बन |
मेट दो अवशेष माँ के,भाल से परतंत्रता के
वीर तेरे भी विजय के,वरण का पर्व आया ||||