हे शारदे सद्बुद्धि बल दो
राष्ट्र भक्ति प्रबल दो
शील दो व्यवहार में
और सत्यनिष्ठा अचल दो।
दो सहस्र ईसा से पहले,
छोड़ गई क्यों भारत को?
'नदीतमा' बन वापस आओ
नित्य शुभ्र शुभ स्नान दो।
नील तारा श्री हमें दो
शिव संकल्प महान दो
ज्ञान दो विज्ञान दो
चारित्र्य का उत्थान दो।
रूप दो मातंगिनी
और पाप को अवसान दो
हे स्फटिका भारत को पुन:
गुरुता का अनुपम दान दो।
अब दिव्यता दो वतन को
भारत को नूतन प्राण दो
स्व हृदय में स्थान दो
मां, यही अभिमान दो।
हे वीणावादिनी सरगम की
लय को सच्चा प्रतिमान दो
हे हंसवाहिनी परमहंस बन जाएं
हम क्रियमाण दो।
ज्ञान ग्रंथों के जलधि को
प्रखर अभेद्य उफान दो
लुप्त हुई विद्याओं को
अनुभूत अनुसंधान दो।
मंजुलहासिनी हर्ष दो
मन को उमंगित गान दो
हे ब्राह्मणी इन्द्रियों को
वश कर सकूं यही वरदान दो।
पुन: विश्व गुरु गरिमा पाए
राष्ट्र उच्च सोपान दो
पुन: स्वर्ण चिड़िया कहलाए
राष्ट्र, गर्व का भान दो।
अंत काल में मातृभूमि हित
मरूं यही सम्मान दो
सिर्फ यही सम्मान दो
मां बस इतना सम्मान दो।
इस ब्लॉग को लिखने का एक ही मकसद है देश भक्ति गीत और संघ के गीतो के माध्यम से हर इंसान के अंदर के भारतीय को जगाना |
शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011
बुधवार, 13 अप्रैल 2011
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएँ,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
केशव ने जो रच डाला
माधव ने वह कर डाला
विश्व जय बोल रहा है आज
तू भी अपने मुख को खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएँ,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
केशव ने जो रच डाला
माधव ने वह कर डाला
विश्व जय बोल रहा है आज
तू भी अपने मुख को खोल
कलम, आज उनकी जय बोल
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