शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

बनें हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का

बनें हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का
गले में शील की माला पहनकर ज्ञान की कफनी
पकड़कर त्याग का झंडा रखेंगे मान भारत का

बनें हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का


जलाकर कष्ट की होली उठाकर ईष्ट की झोली
जमाकर संत की टोली करें उत्थान भारत का

बनें हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

स्वरों में तान भारत की मुखों में आन भारत की
नयन में मूर्ति भारत की नसों में रक्त भारत का

बनें हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

हमारे जन्म का सार्थक हमारे मोक्ष का कारण
हमारे स्वर्ग का साधन यही उत्थान भारत का

बनें हम हिंद के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

सोमवार, 21 नवंबर 2011

सब देशों का एक दिन, भारत ये सरदार था

सब देशों का एक दिन, भारत ये सरदार था
जो भी आया इसकी शरण में, उसका बेड़ा पार था ||

जर्मन चीन जापान क्या, इटली रूस ईरान क्या
अमरीका यूनान क्या, हर कोई ताबेदार था ||
सब देशों का एक दिन, भारत ये सरदार था
जो भी आया इसकी शरण में, उसका बेड़ा पार था ||

दूध दही की धारियाँ न थी चोर चाकारियाँ
सतवंती थी नारियाँ ना कोई व्यभिचार था ||
सब देशों का एक दिन, भारत ये सरदार था
जो भी आया इसकी शरण में, उसका बेड़ा पार था ||

घर घर यज्ञ रचाते थे मुहं माँगा फल पाते थे
बादल मेह बरसाते थे न कोई बीमार था ||
सब देशों का एक दिन, भारत ये सरदार था
जो भी आया इसकी शरण में, उसका बेड़ा पार था ||

कहीं भी न था शोरासर दुश्मन का भी न था डर
क्रष्न सुदामा सा परस्पर कैसा सुंदर प्यार था ||
सब देशों का एक दिन, भारत ये सरदार था
जो भी आया इसकी शरण में, उसका बेड़ा पार था ||

शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

बने हम धर्म के योगी धरेंगे ध्यान भारत का

बने हम धर्म के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का
गले में शील की माला पहन कर ज्ञान की पगड़ी
पकड़ कर त्याग का झंडा धरें अभिमान भारत का
बने हम धर्म के योगी धरेंगे ध्यान भारत का

जलाकर स्वार्थ की होली उठाकर निष्‍ठ की झोली
जमाकर संत की टोली करें उच्चार भारत का
बने हम धर्म के योगी धरेंगे ध्यान भारत का

हमारे जन्म का सार्थक हमारे मोक्ष का कारण
हमारे स्वर्ग का साधन यही उद्धान भारत का
बने हम धर्म के योगी धरेंगे ध्यान भारत का
उठा कर धर्म का झंडा करें उत्थान भारत का

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम

न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी
सदा जो जगाए बिना ही जगा है अंधेरा उसे देखकर ही भगा है
वही बीज पनपा पनपना जिसे था घूना क्या किसी के उगाए उगा है
अगर उग सको तो उगो सूर्य बनकर प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी
न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ||
सही राह को छोड़ कर जो उड़े हैं वही देख कर दूसरों को कुढ़े हैं
बिना पंख तोले उड़े जो गगन मे न संबंध उनके गगन से जुड़े हैं
अगर उड़ सको तो पखेरू बनो तुम त्वरता तुम्हारे चरण चूम लेगी
न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ||
न जो बर्फ की आँधियों से लड़े हैं कभी पग न उनके शिखर पर पड़े हैं
जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से वही जी चुराकर विमुख हो खड़े हैं
अगर जी सको तो जियो जूझ कर तुम अमरता तुम्हारे चरण चूम लेगी
न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ||

विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी

विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी
आराधक है विश्‍व शांति के अक्षयटेक हमारी
विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी

विविध पंथ मत दर्शन शैली भाषा रीति विधान प्रणाली
एक सचिदानन्द रूप की भव्य श्राष्टि यह सारी
विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी

अर्थ काम के पीछे सब नर भाग रहे हैं अंधे हो कर
धर्म भाव से दूर करेंगे विक्रति स्वेचछाचारी
विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी

वलिहीनों को नहीं पूछता बलबानो को विश्‍व पूजता
संघ शक्ति युग सत्य आज है मानवता हितकारी
विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी

संघ शक्ति यह विजय शालिनी खलसंहारक धर्म रक्षिणी
नये विस्व का स्रजन करेगी सब जन मंगलकारी
विश्‍व मंगल साधना के हम हैं मौन पुजारी

सोमवार, 5 सितंबर 2011

Kavita

कातिलों की मुक्ति का विधान हो गया यहां

आज देशद्रोही भी महान हो गया यहां।

इक रिवाल्वर ने देशभक्ति को डरा दिया,

कातिलों की टोलियों को रहनुमा बना दिया।

कल लिए हुए खड़ा था बम बनाती टोलियां,

जो उजाड़ता रहा है मेहंदी, मांग, रोलियां।

जो सदा वतन की लाज को उघाड़ता रहा,

और भारती का मानचित्र फाड़ता रहा।

जो नकारता रहा है देश के विधान को,

थूकने की चीज मानता था संविधान को।

इसके सर पे ताज धरके हो रही है आरती,

रो रहा है देशप्रेम, रो रही है भारती।

जो हमारी रोती मातृभूमि को सुकून दे,

और देश द्रोहियों को गोलियों से भून दे,

ऐसे सरफरोश का हमें प्रकाश चाहिए,

देश के लिए पटेल या सुभाष चाहिए।

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

*गीत*

युग युग से हिन्दुत्व सुधा की ,बरस रही मंगलमय धार
भारत की हो जय-जयकार भारत की हो जय-जयकार||
भारत ने ही सारे जग को ज्ञान और विज्ञान दिया
अनुपम स्नेह भरी द्रष्टि से जन जन का उपकार किया
जननी की पवन पूजा का सुखमय रूप हुआ साकार
भारत की हो जय-जयकार भारत की हो जय-जयकार||
भारत अपने भव्य रूप को धरती पर फिर प्रकटाए
नष्ट करे सारे दोषो को समरसता फिर सरसाए
पुण्य धरा के अमर पुत्र हम पहचाने निज शक्ति अपार
भारत की हो जय-जयकार भारत की हो जय-जयकार ||
भारत भक्ति ह्रदय मे भरकर अनथक तप दिन रात करें
शाखा रूपी नित्य साधना सुंदर सुगठित रूप वरें
निर्भय होकर बढ़े निरंतर द्रढता से जीवन व्रत धार
भारत की हो जय-जयकार भारत की हो जय-जयकार ||

सोमवार, 20 जून 2011

गीत

धरती की शान तू है मनु की संतान
तेरी मुठ्ठीयो मे बंद तूफान है रे
मनुष्य तू बड़ा महान है
भूल मत,मनुष्य तू बड़ा महान है ||

तू जो चाहे पर्वत पहाड़ों को फोड़ दे
तू जो चाहे नदियों के मुख को मोड़ दे
तू जो चाहे माटी से अमृत निचोड़ दे
तू जो चाहे धरती से अम्बर को जोड़ दे
अमर तेरे प्राण,मिला तुझको वरदान
तेरी आत्मा मे स्वय भगवान हैं रे ||

नयनों मे ज्वाल तेरी गति मे भूचाल
तेरी छाती मे छुपा महाकाल है रे
प्रथवी के लाल तेरा हिमगिरि सा भाल
तेरी भ्रकूटी मे तांडव का ताल है रे
निज को तू जान जान ज़रा शक्ति पहचान
तेरी वाणी मे युग का आहवान है रे ||

धरती सा धीर तू है अग्नि सा वीर
तू जो चाहे काल को भी थाम ले
पापों का प्रलय रुके पशुता का शीश झुके
तू जो अगर हिम्मत से काम ले
गुरु सा मतिमान, पवन सा तू गतिमान
तेरी नभ से भी उँची उड़ान है रे ||

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011

कविता

हे शारदे सद्बुद्धि बल दो
राष्ट्र भक्ति प्रबल दो
शील दो व्यवहार में
और सत्यनिष्ठा अचल दो।

दो सहस्र ईसा से पहले,
छोड़ गई क्यों भारत को?
'नदीतमा' बन वापस आओ
नित्य शुभ्र शुभ स्नान दो।

नील तारा श्री हमें दो
शिव संकल्प महान दो
ज्ञान दो विज्ञान दो
चारित्र्य का उत्थान दो।
रूप दो मातंगिनी
और पाप को अवसान दो
हे स्फटिका भारत को पुन:
गुरुता का अनुपम दान दो।

अब दिव्यता दो वतन को
भारत को नूतन प्राण दो
स्व हृदय में स्थान दो
मां, यही अभिमान दो।

हे वीणावादिनी सरगम की
लय को सच्चा प्रतिमान दो
हे हंसवाहिनी परमहंस बन जाएं
हम क्रियमाण दो।

ज्ञान ग्रंथों के जलधि को
प्रखर अभेद्य उफान दो
लुप्त हुई विद्याओं को
अनुभूत अनुसंधान दो।

मंजुलहासिनी हर्ष दो
मन को उमंगित गान दो
हे ब्राह्मणी इन्द्रियों को
वश कर सकूं यही वरदान दो।

पुन: विश्व गुरु गरिमा पाए
राष्ट्र उच्च सोपान दो
पुन: स्वर्ण चिड़िया कहलाए
राष्ट्र, गर्व का भान दो।

अंत काल में मातृभूमि हित
मरूं यही सम्मान दो
सिर्फ यही सम्मान दो
मां बस इतना सम्मान दो।

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

कलम, आज उनकी जय बोल

जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएँ,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल

केशव ने जो रच डाला
माधव ने वह कर डाला
विश्‍व जय बोल रहा है आज
तू भी अपने मुख को खोल
कलम, आज उनकी जय बोल

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

अब जाग उठे हैं हम

अब जाग उठे हैं हम कुछ करके दिखा देंगे
हे माँ तेरे चरणों मे आकाश झुका देंगे ||
अब ज़ोश में आये हैं अब होश में आये
अब उठ बैठे हैं हम तूफान मचा देंगे ||
सदियों की गुलामी को हम सबने भगाया है
दुनिया के लुटेरों को दुनियां से मिटा देंगे
हे माँ तेरे चरणों मे आकाश झुका देंगे ||
आंशू न बहा माता मोती न लूटा माता
हम तेरे पसीने पे खून अपना बहा देंगे
हे माँ तेरे चरणों मे आकाश झुका देंगे ||

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

हमे वीर केशव

हमे वीर केशव मिले आप जब से
नई साधना की डगर मिल गयी है
भटकते रहे ध्येय पथ के बिना हम
न सोचा कभी देश क्या धर्म क्या है
न जाना कभी पा मनुज तन जगत मे
हमारे लिए श्रेष्ठतम कर्म क्या है
दिया ज्ञान जब से हमें आपने है
निरंतर प्रगती की डगर मिल गयी है||
समाया हुआ घोर ताम सर्वदिक था
सुपथ है किधर नहीं सूझता था
सभी सुप्त थे घोर ताम मे अकेला
ह्रदय आपका हे तपी जूझता था
जलाकर स्वय किया मार्ग जगमग
हमे प्रेरणा की डगर मिल गयी है||
बहुत थे दुखी हिन्दू निज देश में ही
यूगो से सदा घोर अपमान पाया
द्रवित हो गये आप यह द्रश्य देख
नहीं एक पल को कभी चैन पाया
ह्रदय की व्यथा, संघ बन फूट निकली
हमें संगठन की डगर मिल गयी है||
करेंगे पुनः हम सुखी मात्र भू को
यही आपने शब्द मुख से कहे थे
पुनः हिन्दू का हो सुयश गान जाग में
संजोए यही स्वप्न पथ पर बढ़े थे
जला डीप ज्योतित किया मात्र मन्दिर
हमें अर्चना की डगर मिल गयी है||

रविवार, 23 जनवरी 2011

गीत

चित्रकार तू चित्र बना दे इन सैनिक मतवालों का
मातृ भूमि हित बलिवेदी पर शीश चढ़ाने वालों का ||

जौहर की ज्वाला को जगा दे आग लगा दे प्राणो में
नूतन शक्ति जोश जगा दे भारत के दीवानो में
दुश्मन के पैटन टैंक और जैट जलाने वालों का
मातृ भूमि हित बलिवेदी पर शीश चढ़ाने वालों का ||

वीर सुभाष महाराणा और छत्रपति शिवाजी का
झाँसी वाली महारानी और चूड़ावत छात्रानी का
देश की खातिर कटा दिया सिर जोश बड़ाने वालों का
मातृ भूमि हित बलिवेदी पर शीश चढ़ानेवालों का ||

चित्र बना केसरिया वेशी आर्यावीर ललनाओं का
चूड़ी वाले कमल करों मे आज पुनः तलवारों का
स्वतंत्रता की रक्षा के हित कदम बढ़ाने वालों का
मातृ भूमि हित बलिवेदी पर शीश चढ़ाने वालों का ||

चित्रकार तू चित्र बना दे इन सैनिक मतवालों का
मातृ भूमि हित बलिवेदी पर शीश चढ़ाने वालों का ||